लखनऊ —50 से अधिक मकान एयरपोर्ट की बाउंड्री से सटाकर बनाए गए: गिराने की LDA की नोटिस, मामला कमिश्नर कोर्ट पहुंचा, 20 सितंबर को सुनवाई Lucknow समाचार

एलडीए ने जो निर्माण सील करने की कार्रवाई की थी उसको पेंट से मिटा दिया गया है।

लखनऊ में चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा के पास बने मकान पर 20 सितंबर को कमिश्नर कोर्ट में सुनवाई होगी। दरअसल, यहां पर 39 मकानों को पहले सील कर दिया गया था। उसके बाद उनको गिराने का आदेश एलडीए ने जारी कर दिया था। लेकिन अब इस मामले में कमिश्नर

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जिसकी सुनवाई की तारीख 20 सितंबर रखी गई है। बताया जा रहा है कि वहां से अगर अपील खारिज होती है तो मकानों को गिराने का काम शुरू हो जाएगा। हालांकि अभी यहां रहने वालों के पास हाईकोर्ट और उसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट में अपील का भी रास्ता खुला है।

बताया जा रहा है कि एयरपोर्ट की बाउंड्री से लगे कई ऐसे मकान हैं, जो मानक से ज्यादा ऊंचे बने हैं। यह फ्लाइट के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। इसको लेकर LDA ने करीब 50 मकानों को चिन्हित भी किया है

सूत्रों का कहना है कि जिन मकानों को पहले सील किया गया था उसके ऊपर फिर से बिल्डर ने पेंटिग करा दी है।

तारीख पर तारीख लगाने का होता है खेल

एलडीए से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कई बार अवैध निर्माण में एलडीए अधिकारियों की मिली- भगत से तारीख बढ़वाने का खेल भी होते रहता है। इसमें कोर्ट में ही तारीख पर तारीख ली जाती है। ऐसे में फैसला आने में सालों लग जाते है। उस दौरान बिल्डर धीरे से मकान बेचकर निकल जाता है। सूत्रों का कहना है कि बिल्डर से यहां प्रापर्टी खरीदने वाले कई लोगों ने अभी पूरा पैसा नहीं दिया है।

बिल्डर का पैसा भी आवंटियों ने रोका

मामला विवाद में आने के बाद लोगों ने बिल्डर राधेश्याम ओझा का पैसा भी रोक दिया है। ऐसे में उस पैसे को निकालने के लिए एलडीए के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और इंजीनियरों से मिली- भगत की जा सकती है। इसमें छह महीने भी मामले को बढ़ा दिया गया तो लोगों से आसानी पैसा निकाला जा सकता है।

बिल्डर का पैसा भी विवाद बढ़ने के बाद आवंटियों ने रोक दिया है।

सील करने के बाद भी बिके मकान

पिछले दिनों अपर सचिव, सीनियर इंजीनियर और स्थानीय जेई ने इन इलाकों का दौरा भी किया। इन मकानों को सील किया गया था। हालांकि बाद में एलडीए अधिकारियों की मिली- भगत से ही यहां न सिर्फ निर्माण हुआ बल्कि मकानों को रजिस्ट्री भी कर दी गई और लोग यहां आकर रहने भी लगे।

इलाके में हुए ह निर्माण प्रॉपर्टी डीलर और LDA की मिलीभगत का नतीजा है। यहां राधेश्याम ओझा नाम के प्रॉपर्टी डीलर ने 50 लोगों को जमीन बेची है। इसमें लोगों का 40 से 70 लाख रुपए तक खर्च हो चुका है। स्थिति यह है कि एयरपोर्ट के ठीक पीछे बिजनौर इलाके में कई मकान पूरी तरह से तैयार कर दिए गए है। वहां 6 परिवार रहने भी लगा है।

किसान से सीधे कराई रजिस्ट्री बिल्डर ने लोगों को झांसे में रखते हुए जमीन की रजिस्ट्री किसान से कराई। बिल्डर ने खुद को ठेकेदार की तरह पेश किया, जबकि रजिस्ट्री का पैसा खुद लिया। स्थानीय लोगों ने नाराज होकर बिल्डर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

बिल्डर से रजिस्ट्री किसान से कराई है। ऐसे में पैसा आवंटियों का ही फंसेगा।

गलत थे तो लोन क्यों मिला LDA अधिकारियों का कहना है कि यहां बने 50 मकान सीधे तौर पर गिराए जाएंगे, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां आए दिन LDA वाले आते हैं, तो कहते है कि 10 मिनट में घर खाली कर दो। सभी लोगों ने लोन ले लिया है। सबकी EMI जा रही है।

लोगों ने कहा- अगर हम गलत होते और यहां अवैध निर्माण था तो LIC और ICICI बैंक से हमको लोन नहीं मिलना चाहिए था। महिलाओं का कहना था कि हम मर जाएंगे लेकिन घर नहीं छोड़ेंगे। कुछ महिलाओं का कहना था कि इस पूरे मामले में वह सीएम योगी आदित्यनाथ से गुहार लगाएंगी। इसके लिए अगर गोरखपुर जाना पड़े तो वहां भी जाएंगी।

LDA प्रशासन घरों को गिराने के लिए लगातार दवाब बना रहा है।

500 से ज्यादा मकान जद में आ सकते है दैनिक भास्कर की टीम मौके पर पहुंची तो पाया कि ठीक तरीक से सर्वे नहीं किया गया। अगर सही मानक के हिसाब से जांच की जाए तो करीब 500 से ज्यादा मकान मानकों के खिलाफ हैं। पूरे इलाके में भवनों का निर्माण बिना ले-आउट पास कराए हुआ है।

LDA वीसी प्रथमेश कुमार ने इसकी जांच के लिए कमेटी बनाई है। हालांकि कमेटी की रिपोर्ट में महज एक ही सोसाइटी आई है। फ्लाइट्स के टेक-ऑफ, लैंडिंग मैनुअल के हिसाब से भी यह बिल्डिंग्स मानकों को पूरा नहीं करती।

एलडीए ने यहां सीलिंग की कार्रवाई उसके बाद भी मकान बेचे गए।

29 जुलाई को एयरपोर्ट प्रशासन ने लिखा था पत्र एयरपोर्ट के चीफ ऑपरेटिंग अफसर अभिषेक प्रकाश ने 29 जुलाई को LDA वीसी को जांच के लिए पत्र लिखा था। इसके बाद 3 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। टीम ने एयरपोर्ट के आसपास निर्माण हुए भवनों का सर्वे किया था।

टीम में अपर सचिव ज्ञानेंद्र वर्मा, जोनल अधिकारी देवांश त्रिवेदी, अधिशासी अभियंता संजीव गुप्ता शामिल थे। उस रिपोर्ट में भी निर्माण गलत पाए गए थे।

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