अयोध्या का सिंहासन त्यागकर राम को मनाने निकले भरत की लीला ने भावुक कर दिया। भाई प्रेम देखकर लीला प्रेमियों की आंखों में आंसू छलक आए, और लीला स्थल दर्शकों से भरा रहा।
वाराणसी स्थित रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का मंचन जारी है। यह लीला जितना अनोखा है, उसे निहारने वाले भक्त भी उतने ही खास है। उनके ठाठ भी राजशाही है और लीला में शामिल होने से पहले वो बनारसी रूप में तैयार होते है। यह क्रम पूरे एक महीने तक चलता है। ल
भाई को मनाने वन को निकले भरत।
गुरू वशिष्ठ ने दोनों भाइयों को समझाया
वहीं दोनों भाइयों को जब पत्ता चला कि सारा खेल मंथरा का है तो शत्रुघ्न उसकी चोटी पकड़ कर जमीन पर पटक देते हैं। भरत ऐसा करने से शत्रुघ्न को मना करते हैं। वह कौशल्या के पास गए तो उन्होंने समझाया कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। गुरु वशिष्ठ ने भी समझाया। वह परिजनों को लेकर श्रीराम को मनाने वन की ओर चल पड़े।
लीला स्थल पर रामचरित मानस का पाठ करते लीला प्रेमी।
राम को मनाने दोनों भाई निकले वन
भरत को आते देख निषादराज का दूत सेना के साथ भरत के आने की सूचना देता है तो वह अपना धनुष-बाण मंगा लेते हैं लेकिन भरत से मिलकर उनका भ्रम दूर हो जाता है। निषादराज भरत के साथ सबको लेकर गंगा दर्शन कराते हैं। भरत गंगा पार कर उस रास्ते आगे बढ़े जिधर से राम गुजरे थे। सभी भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचे हैं। यहीं आरती के साथ लीला को विराम दिया गया।